हिन्दू धर्म का एक सामान्य नियम है कि जब भी किसी देवी देवता की पूजा होती है चाहे वह भगवान विष्णु की हो या लक्ष्मी की अथवा शिव पार्वती की हर पूजा के बाद या यूं कहें कि पूजा समापन आरती के साथ होता है।
आरती में देवी-देवताओं का नाम का गुणगान और उनका ध्यान किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि आरती में जो धंद और लय के साथ जो गायन विधि से देवी-देवताओं का ध्यान किया जाता है उससे संबंधित देवता प्रसन्न होते हैं।
लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी यह बताता है कि आरती करना बड़ा ही फायदेमंद होता है। और सबसे खास बात है आरती में प्रयोग होने वाली सामग्री और आरती का तरीका।
आरती के इन फायदों में छुपा है आरती का रहस्य
सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है। आरती की थाली या दीपक ( या सहस्त्र दीप) को इष्ट देव की मूर्ति के समक्ष ऊपर से नीचे गोलाकार घुमाया जाता है। घुमाने की प्रक्रिया में जो वृत बनता है, उसे ओम के स्वरूप की तरह होना चाहिए।
आरती के दीपक को उपस्थित भक्त समूह में घुमाया जाता है, लोग अपने दोनों हाथों को नीचे को उल्टा कर जोड़ लेते हैं। आरती को घुमा कर अपने मस्तक को लगाते हैं। जिसका उद्देश्य ईश्वर के प्रति अपना समर्पण और प्रेम जताना होता है।
आरती की थाल का महत्व

आरती दीपकों में घी का उपयोग कर सकते हैं। आरती में जल से भरे कलश, नारियल, मुद्रा, तांबे के सिक्के के अलावा नदियों के जल का उपयोग किया जाता है।
तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अन्य धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है। तुलसी चरणामृत में प्रसाद के रूप में भी रखी जाती है।
Chalisa (चालीसा)
ॐ (Om) is shortest and simplest one word mantra, also known as bija (seed) mantra. Like Om, Shanti Mantra and Gayatri Mantra are common and fundamental mantra for daily uses.